जब घनघोर अंधेरी रातोँ मेँ,
आँखोँ मेँ नीँद ना होती है,
जब नदिया की धारा के जैसे,
धङकन मेँ कलकल होती है, ,
तब तकिया को बाहोँ मेँ लेकर,
ख्बाबोँ मेँ तेरे खोते हैँ,
फिर तेरी यादेँ करती तन्हा,
हम सुबक सुबक कर रोते हैँ, ,
फिर रोते रोते इन अंखियोँ मेँ,
कोई निँदिया आकर बस जाती है,
फिर बदरा के जैसे घुमङ घुमङ,
तू ख्बाबोँ मेँ आकर तङपाती है, ,
तब तेरी बिछङन मेँ तेरी तङपन मेँ,
मेरी धङकन थम सी जाती है,
फिर घनघोर अंधेरी रातोँ मेँ,
नैनोँ से नीँद उङ जाती है, ,
फिर हर लम्हा इक नयी करवट मेँ,
आँखोँ से निकले शरबत मेँ,
तन्हा रात गुजरते जाती है, ,
पर तेरे ख्बाबोँ मेँ, तेरी यादोँ मेँ,
और घनघोर अंधेरी रातोँ मेँ,
फिर आँखोँ मेँ नीँद ना आती है, ,
तन्हा रात गुजरते जाती है,
पर घनघोर अंधेरी रातोँ मेँ,
आँखोँ मेँ नीँद ना आती है,
आँखोँ मेँ नीँद ना आती है,,,
- Yogesh Gupta
आँखोँ मेँ नीँद ना होती है,
जब नदिया की धारा के जैसे,
धङकन मेँ कलकल होती है, ,
तब तकिया को बाहोँ मेँ लेकर,
ख्बाबोँ मेँ तेरे खोते हैँ,
फिर तेरी यादेँ करती तन्हा,
हम सुबक सुबक कर रोते हैँ, ,
फिर रोते रोते इन अंखियोँ मेँ,
कोई निँदिया आकर बस जाती है,
फिर बदरा के जैसे घुमङ घुमङ,
तू ख्बाबोँ मेँ आकर तङपाती है, ,
तब तेरी बिछङन मेँ तेरी तङपन मेँ,
मेरी धङकन थम सी जाती है,
फिर घनघोर अंधेरी रातोँ मेँ,
नैनोँ से नीँद उङ जाती है, ,
फिर हर लम्हा इक नयी करवट मेँ,
आँखोँ से निकले शरबत मेँ,
तन्हा रात गुजरते जाती है, ,
पर तेरे ख्बाबोँ मेँ, तेरी यादोँ मेँ,
और घनघोर अंधेरी रातोँ मेँ,
फिर आँखोँ मेँ नीँद ना आती है, ,
तन्हा रात गुजरते जाती है,
पर घनघोर अंधेरी रातोँ मेँ,
आँखोँ मेँ नीँद ना आती है,
आँखोँ मेँ नीँद ना आती है,,,
- Yogesh Gupta
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