20 June 2014

शब्दों में ही खोजूँगा

शब्दों में ही खोजूँगा और पाऊँगा तुम्हें 
वर्ण-वर्ण जोड़कर गढूँगा ,
बिल्कुल तुम्हारे जितना ही सुन्दर एक शब्द 
और आत्मा की संपूर्ण शक्ति भर , फूँक दूँगा निश्छल प्राण 
जीवंत कर तुम्हें , कवि हो जाऊँगा ,
ईश्वर हो जाऊँगा........
तुम्हारा प्यार बुरे दिनों में आई राहत की चिट्ठियाँ हैं 
तुम्हारा प्यार बसंत की गुनगुनी भोर में ,
किसी पेड़ की ओट से उठती कोयल की बेतरह कूक है 

तुम्हारा प्यार लहलहाती गर्मी में ,
एक गुड़ की डली के साथ एक ग्लास पानी है !!!