ये कैसी अनजानी सी आहट आई है ; मेरे आसपास ...
ये कौन नितांत अजनबी आया है मेरे द्वारे ...मुझसे मिलने,
मेरे जीवन की , इस सूनी संध्या में ; ये कौन आया है ….
अरे ..तुम हो मित्र ; मैं तो तुम्हे भूल ही गया था, जीवन की आपाधापी में
आओ प्रिय , आओ..मेरे ह्रदय के द्वार पधारो, मेरी मृत्यु... आओ स्वागत है तुम्हारा
लेकिन ; मैं तुम्हे बताना चाहूँगा कि, मैंने कभी प्रतीक्षा नहीं की तुम्हारी ;
न ही कभी तुम्हे देखना चाहा है !
लेकिन सच तो ये है कि , तुम्हारे आलिंगन से मधुर कुछ नहीं
तुम्हारे आगोश के जेरे-साया ही ; ये ज़िन्दगी तमाम होती है
मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ , कि ; तुम मुझे बंधन मुक्त करने चले आये ;
यहाँ …. कौन अपना ,कौन पराया , इन्ही सच्चे-झूठे रिश्तो , की भीड़ में,
मैं हमेशा अपनी परछाई खोजता था !
साँसे कब जीवन निभाने में बीत गयी, पता ही न चला ;
अब तुम सामने हो;तो लगता है कि, मैंने तो जीवन को जाना ही नहीं…..
पर हाँ , मैं शायद खुश हूँ , कि; मैंने अपने जीवन में सबको स्थान दिया !
सारे नाते ,रिश्ते, दोस्ती, प्रेम….सब कुछ निभाया मैंने …..
यहाँ तक कि ; कभी कभी ईश्वर को भी पूजा मैंने ;
पर तुम ही बताओ मित्र , क्या उन सबने भी मुझे स्थान दिया है
पर , अब सब कुछ भूल जाओ प्रिये, आओ मुझे गले लगाओ ;
मैं शांत होना चाहता हूँ ! ज़िन्दगी ने थका दिया है मुझे;
तुम्हारी गोद में अंतिम विश्राम तो कर लूं !
तुम तो सब से ही प्रेम करते हो, मुझसे भी कर लो ;
हाँ……मेरी मृत्यु मेरा आलिंगन कर लो !
बस एक बार तुझसे मिल जाऊं ... फिर मैं भी इतिहास के पन्नो में ;
नाम और तारीख बन जाऊँगा !! फिर ज़माना , अक्सर कहा करेंगा कि
वो भला आदमी था , पर उसे जीना नहीं आया .....
कितने ही स्वपन अधूरे से रह गए है ;
कितने ही शब्दों को , मैंने कविता का रूप नहीं दिया है ;
कितने ही चित्रों में , मैंने रंग भरे ही नहीं ;
कितने ही दृश्य है , जिन्हें मैंने देखा ही नहीं ;
सच तो ये है कि , अब लग रहा है कि मैंने जीवन जिया ही नहीं
पर स्वप्न कभी भी तो पूरे नहीं हो पाते है
हाँ एक स्वपन , जो मैंने ज़िन्दगी भर जिया है ;
इंसानियत का ख्वाब ; उसे मैं छोडे जा रहा हूँ ...
मैं अपना वो स्वप्न इस धरा को देता हूँ......