08 April 2014

मेरे घर में एक ही सुख है कि यहाँ

मेरे अपने दुख ने मुझे संसार भर का दुख दिया
इसके लिए उसने मुझे दिया भरा-पूरा मेरा संसार भी,

मेरा दुख कभी बौना न था
बचपन में ही उसने मुझे चंदा-मामा दिया, कभी टूटने वाला खिलौना नहीं दिया,
माँ के दुख ने मुझे इंसान बनाया पिता के दुख ने शैतान होने से रोका
पत्नी के दुख ने पैदा की मेरे भीतर एक बड़ी स्त्री
बदल दिया सुख का मापदण्ड, दुख ने मुझे कुछ भी कम नहीं दिया

बाज़ार जा रही एक लड़की की ऑंखों की चमक ने
उड़ेल दिया मुझ पर पूरे बाज़ार का दुःख,

एक हिन्दू के दुख ने खड़ा कर दिया मुझे मंदिर के मेले में अकेला,
मेरे खेतो में कभी पानी नहीं रुका, चारों ओर उपजे दुख ने
नहीं उठाने दी मुझे अपनी मेड़,

मेरे घर में एक ही सुख है कि यहाँ सबका दुख एक है
दुख ने घर में एक ही थाली दी और उस थाली पर
एक साथ बैठा कर मुझे दिये अनेक भाई ।

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