21 June 2014

संदेश ,,,,,,,,,,,

पूजा की थाली लेकर साँझ सकारे हाथों में तुम चली
बिखर गयी अरुणाभा दीपक में चली हवा
साड़ी सरकी ’सर’ से दीपक भकुआया
कँपती लौ ने संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।

कंगन खनका हाथों में खन खन खन् न् न्
स्वर में, बह चली गंध गजरे की मन में
काँपी आँखें बन गई श्वास-प्रश्वास सरस सिहरन
मुख-चितवन ने संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।

पूर्ण चन्द्रमा-रात बैठकर मधुरिम स्वर तुमने गाया, पलकों से
चन्दा से ना जाने क्या बतियाया
मुग्ध हुआ क्षण-क्षण मन का यह आवारापन
झूमा बचपन-सा औ’ संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।

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