24 June 2014

दुनिया इसे प्यार का नाम देगी एक

एक रोज़ मैं पढ़ रही होऊँगी कोई कविता
ठीक उसी वक़्त कहीं से कोई शब्द ,
शायद कविता से लेकर उधार मेरे जूड़े में सजा दोगे तुम ।

एक रोज़ मैं लिख रही होऊँगी डायरी ,
तभी पीले पड़ चुके डायरी के पुराने पन्नों में ,
मेरा मन बाँधकर उड़ा ले जाओगे दूर गगन की छाँव में ।

एक रोज़ जब कोई आँसू आँखों में आकार ले रहा होगा ठीक उसी वक़्त ,
अपने स्पर्श की छुअन से उसे मोती बना दोगे तुम ।

एक रोज़ पगडंडियों पर चलते हुए जब लड़खड़ाएँगे क़दम ,
तो सिर्फ़ अपनी मुस्कुराहट से थाम लोगे तुम ।

एक रोज संगीत की मंद लहरियों को बीच में बाधित कर ,
तुम बना लोगे रास्ता मुझ तक आने का ।

एक रोज़ जब मैं बंद कर रही होऊँगी पलकें हमेशा के लिए ,
तब न जाने कैसे खोल दोगे ज़िंदगी के सारे रास्ते ,
हम समझ नहीं पाएँगे फिर भी ,
दुनिया शायद इसे प्यार का नाम देगी एक रोज़..

No comments:

Post a Comment